आंधुनिक हिन्दी-नाटक की पृष्ठ-भूमि – जो रचना श्रवण द्वारा ही नहीं अपितु दृष्टि द्वारा भी दर्शकों के हृदय में रसानुभूति कराती है उसे नाटक या दृश्य-काव्य कहते हैं। इस बात में शायद सभो नाम्यशास्त्री एक सत हैं कि नाटक के मूल में किसी-न किसी प्रकार का इन्द्र रहता है । आज भग- बान की कृपा से जीवन में दृन्द्र की तीत्रवा होते हुए भी, इसारा नाटक क्यों सम्र॒द्ध नहीं हे–यह प्रश्न विचित्र ही नहीं महत्वपूर्ण भी है। इसका सब से बड़ा और प्रत्यक्ष कारण तो यही है कि हिन्दी के पास कोई रघह्चमदज्न न कभी रहा और न अब है, जल्ञेकिन इसके भीतर एक कारण ओर भी हे : वह यह कि हिन्दी का आलोचक एक कल्पना-स्थित रघ्जमशञ्न की बात करता हुआ सदा से अपने उपलब्ध नाटक-साहित्य के प्रति अन्याय करता रहा है।
इस पुस्तक के लेखक श्री डॉ. नगेन्द्र जी है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुस्तक का कुल भार 8.21 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या 173 है। निचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है। पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।
Writer (लेखक ) | डॉ. नगेन्द्र |
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) | Hindi | हिंदी |
Book Size (पुस्तक का साइज़ ) |
8.21 MB
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Total Pages (कुल पृष्ठ) | 173 |
Book Category (पुस्तक श्रेणी) | नाटक/ Drama |
पुस्तक का एक अंश
हिन्दी के साहित्यकार ने या तो नाटक को हाथ लगाने की हिम्मत ही कम की है. ओर अगर की भी है तो अपनी कल्पना और शक्ति को आवश्यकता से अधिक दबा रखा है जिसके परिणामस्वरूप नाटक बहुत निर्जीव एवं यन्त्रवत् हो गया है। इधर सिनेमा ने भी प्रायः उपन्याख को द्वी अपनाया है–अतः उसके हारा मी बेचारे नाटककार को कोई विशेष भोत्साहरन नहीं मिल्न सका ! अस्तु ।
खाज के नाटक को उत्तराधिकार में स्ववेश-विद्ेश दोनों से थोड़ी-बहुत सम्पत्ति मिली है। स्थुल्न रूप से उसका विवेचन दम इस प्रकार कर सकते हेँ:–
१–संस्कृत के अनूदित नाटक
२–विदेश का रोसान्टिक ड्राम्मा ( विशेष कर शेक्सपियर ओर मॉलियद का साहित्य )
३-हिजेन्द्रलालराय के नाटक
४–हिन्दी के पारसी रह्गमन्न वाले सतते नाटक ,
४- प्रसाद का नास्य-सा दित्य ( ओर दिन्दी के दो एक अन्य मौलिक नाहक )
६–पश्चिम के समस्या-नाटक
संस्कृत के अनुद्त नाटकों का अभाव घड़ता अवश्य, पर बह विदेश के रोमान्टिक डामा के कारण दब गया–अतएव उनका आज़ के नाटक पर कोई विशेष ऋण नहीं | आज शायद ह्टी कोई नाटऋ-कार संस्कृत नाव्य नियमों के विषय में सांचता हो। फिर भी आज कतिपय घटना-प्रधान नाटक संस्कृत के उत्तरकात्नीन नाठकों की परम्परा में और कुछ छोटे भावनात्य संस्कृत नाटिकाओं की परम्परा में मिलते हैं / ये नाटक क्रमशः कथा के उद्वराटन और गीकि-तत्व के उपयोग में संस्कृत से प्रभावित हैं। विदेश के रोमांटिक ड्रामा का प्रभाव कुछ तो सीघा, परन्तु अधिकांश में द्विजेन्द्र-साहित्य के माध्यम द्वारा दिन्दी-नाटक पर बहुत काफी पढ़ा।
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