अनदेखी मनोहर प्रभाकर के द्वारा लिखी गयी पुस्तक है। यह उनका 17वां उपन्यास है जो काफी प्रसिद्ध हुआ है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुस्तक का कुल भार 4 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या 167 है। निचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है। पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।
Writer (लेखक ) | मनोहर प्रभाकर |
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) | हिंदी |
Book Size (पुस्तक का साइज़ ) |
4 MB
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Total Pages (कुल पृष्ठ) |
167
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Book Category (पुस्तक श्रेणी) | Novels / उपन्यास |
पुस्तक का एक मशीनी अनुवादित अंश
कहाँ से शुरू कर अपनी यात-बात क्या अपनी कहानी ही कह लीजिये? क्या हर मौरत अपनी बात कह मकनी है? कई बातें जो जवान तक याकर रह जानी हैं, और सौट जाती है। क्यो? क्या जो कुछ हमने जिन्दगी में देखा, भोगा, सहन किया, क्या वह सब करने जैसा होता है? और हो भी तो क्या अपने मुंह में कहा जा मकता है?
पहली बात तो यही से कहें कि हमने देखा ही भया है ? छोटी-गी आनी दुनिया है। नदी है, समुद्र है, पहाइ है। ये तीनो भी हमने पूरी तरह कहां देव है! न नदी के मूल का पता है, न उसके मारे जीवन-पथ का।
गमुद्र तो वैसे ही बयाह है, वैकिनार है। अनंत उमका क्षितिब है, और उसके भीतर क्या-नया छिपा पड़ा है ? कौन जानता है। रत्नाकर उसका नाम है। एक रत्नाकर टाकू पा जो बाद में महाकवि बाल्मीकि बन गया। एक रत्नाकर मेरे जीवन में आया, जिनकी बात मे वाद मैं बताऊंगी।
पर अब यह पहाड-मा अकेलापन मैं इन तय भपने जीदन के पुराने पन्ने जोर-जोड़कर, संभालकर रखने और उसकी एक अनपडी, अनजानी दष्टि-कूट लिपिकार्य लगाने में ही विज्ञा दंगी तो क्या होगा? इस पोयी के कई पन्ने गायब हैं। कई सवार बब पंघले पड़ गये हैं। पुराने हस्तलिखिन को तो ‘आई गलाम, या बारीक अक्षरों को बड़ा बनाकर दिखाने वाली गोल काच से देवा-पडा भी जा सकता है। पर मेरे जीवन के ऐमें कई अक्षर गाज बनदोखे हैं, और वे पडू भी तो कसे? मैंने वह पड़ने का उपकरण अपने हाथो से बहते पानी में फेंक दिया है। ____ कहते हैं नदी पहाड से निकली । होगा! शायद सब नदियां पहाड फोडकर निकली हों।या फिर क्या आकाश में गंगा की तरह गिरी? या जमीन को दरकाकर