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Ardhnarishwar | अर्धनारीश्वर PDF

अर्धनारीश्वर, रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के द्वारा लिखी गयी धार्मिक पुस्तक  है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुस्तक में भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप का बखान किया गया है। इस पुस्तक का कुल भार 36.65 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या 296 है। नीचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है।  पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।

Writer (लेखक ) रामधारी सिंह ‘दिनकर
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) हिंदी
Book Size (पुस्तक का साइज़ )
36.65 MB
Total Pages (कुल पृष्ठ) 296
Book Category (पुस्तक श्रेणी) Religious / धार्मिक, Literature / साहित्य

पुस्तक का एक मशीनी अनुवादित अंश

एक हाथ में डमरु, एक में वीणा मधुर उदार,
एक नयन में गरल, एक में संजीवन की धार ।
जटाजूट में लहर पुण्य की शीतलता-सुख-कारी,
बालचन्द्र दीपित त्रिपुण्ड पर बलिहारी । बलिहारी !

प्रत्याशा में निखिल विश्व है, ध्यान देवता !
त्यागी, बाँटो, बाँटो अमृत, हिमालय के महान् ऋषि ! जागो ।
फेंको कुमुद-फूल में भर-भर किरण, तेज दो, तप दो,
ताप-तप्त व्याकुल मनुष्य को शीतल चंद्रातप दो।

सूख गये सर, सरित : क्षार निस्सीम जलधि का जल है।
ज्ञानपूर्णि पर चढ़ा मनुज को मार रहा मरुथल है।
इस पावक को शमित करो, मन की यह लपट बुझाओ,
छाया दो नर को, विकल्प की इति से इसे बचाओ।

रचो मनुज का मन, निरभ्रता लेकर शरद्गगन की,
भरो प्राण में दीप्ति ज्योति ले शान्त-समुज्ज्वल धन की ।
पद्म-पत्र पर वारि-विन्दु-निभ नर का हृदय विमल हो,
कृजित अन्तर-मध्य निरन्तर सरिता का कलकल हो ।

मही माँगती एक धार, जो सब का हृदय भिंगोये,
अवगाहन कर जहाँ मनुजता दाह-देष-विष खोये ।
मही माँगती एक गीत, जिसमें चाँदनी भरी हो,
खिलें सुमन, सुन जिसे बल्लरी रातों-रात हरी हो ।

मही माँगती, ताल-ताल भर जाये श्वेत कमल से,
मही माँगती, फूल कुमुद के बरसें विधुमंडल से ।
मही माँगती, प्राण-प्राण में सजी कुसुम की क्यारी,
पाषाणों में गूंज गीत की, पुरुष-पुरुष में नारी ।

लेशमात्र रस नहीं, हृदय की पपरी फूट रही है,
मानव का सर्वस्व निरंकुश मेघा लूट रही है।
रचो, रची शादल, मनुष्य निंज में हरीतिमा पाये,
उपजाओ अश्वत्थ, क्लान्त नर जहाँ तनिक सुस्ताये ।

भरो भस्म में लिन अरुणता कुंकुम के वर्षण से,
संजीवन दो ओ त्रिनेत्र ! करुणाकर ! वाम नयन से ।
प्रत्याशा में निखिल विश्व है, ध्यान देवता ।
त्यागो, बाँटो, बाँटो अमृत, हिमालय के महान् ऋषि । जागो ।

डिस्क्लेमर – यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं।

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