भक्त प्रह्लाद, नत्थीमल उपाध्याय के द्वारा लिखी गयी पौराणिक कथा है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुस्तक में विष्णु भक्त प्रहलाद के विषय बहुत अच्छे से बताया गया है। इस पुस्तक का कुल भार 35 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या 323 है। नीचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है। पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।
Writer (लेखक ) | नत्थीमल उपाध्याय |
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) | हिंदी |
Book Size (पुस्तक का साइज़ ) |
3 MB
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Total Pages (कुल पृष्ठ) |
108
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Book Category (पुस्तक श्रेणी) | Mythological / पौराणिक |
पुस्तक का एक मशीनी अनुवादित अंश
दृश्य पहला स्थान-दैत्यराज हिरण्यकशिपु की राज सभा।
समय-रात्रि [दरवारी गण यथा रथान पठे हुए हैं। उनके मध्य में हिरण्यकशिपु एक रत्नजटिन उच्च सिंहासन पर आसीन । उसके सामने कुछ सुन्दरियाँ नृत्य कर रही है]
(गायन और कृत्य)
लावनी। हम कर सोलह नार यहाँ थाती हैं। अपने स्वरूप का जाल विद्या जाती हैं। हम गायन-वादन और नृत्य करती है। पुरुषों के मन को पल भर में हरती हैं। हम रसिकों के अनुराग-रण से रञ्जित, कुछ-कुछ अनंग की झलक दिखा जाती हैं । हम कर सोलह शृङ्गार यहां पाती हैं। इन कजराले काले नयनों के मारे सैकड़ो तड़पते रहते युवक बिचारे । उनका मन-मधुकर रूप-सुरस का प्यासा, घबड़ाता है, हम हाथ नहीं आती हैं।
अपने स्वरूप का जाल बिछा जाती हैं। (गायिकाएँ जाती हैं, और दैत्यराज हिरण्यकशिपु
मदिरा-पान करता है) . दैत्यराज-(अपने दरबारियो से) वीरो ! आप लोग जानते हैं, मैंने अपने पराक्रम से देवताओं को परास्त किया है।
१ दरबारी-अन्नदाता के जय नाद से अब तक आकाश गूंज रहा है।
२ दुरयारी-सरकार की शक्ति के समक्ष सुर, नर और किन्नर सभी के मस्तक नत हो गये हैं।
३ दरबारी-देवताओं की स्त्रियाँ आप तक भय से कॉप रही हैं।
४ दरबारी-उनके बच्चे भेड़ों की तरह मिमिया रहे हैं।
दैत्यराज-संसार मेरी शक्ति का लोहा मानता है, मुझ क्रोधित देखकर धरित्री घेरूमने लगती है। छाप लोग जानते हैं मैं कौन हूँ? ५ दरवारी-डाप हमारी जाति की अनुपम विभूति हैं ?
६ दरद्यारी-अन्नदाता तीनों लोकों के खामी हैं। हमारे ईश्वर हैं। भार्यावर्त के सम्राट हैं। दैत्यराज-ठीक कहते हो। मैं आज्ञा देता हूँ कि मेरी समस्त
प्रजा मेरे अतिरिक्त किसी दूसरे को ईश्वर न समझे। धर्म और मोक्ष का नाम न ले। कोई भी मनुष्य यज्ञ दान और तप नहीं करे । कोई रामकी उपासना करे। भक्ति का स्वांग कहीं नहीं रचा जाय,मेरे साम्राज्य में जो कोई मेरी इस आज्ञा का उल्लंघन करेगा, वह मृत्यु का दण्ड पाचेगा। जायो, मेरे इस आदेश को घर-घर पहुँचाओ इस कार्य के लिये हजारों राक्षस नियुक्त कर दो कि वे लोग हयां की तरह प्रत्येक नगर और प्रत्येक ग्राम में पहुंच कर इस राजाज्ञा को सुना। और जो कोई इसको न माने उनकों
मौत के घाट उतार। (बहुत से राज्य कर्मचारी अभिवादन करके बाने हैं) –
(पर्दा गिरता है)
डिस्क्लेमर – यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं।