भारतेंदु हरिश्वंद्र ने अपनी पुस्तक ‘काल-चक्र” मै संसारप्रसिद्ध घटनाओं का उल्लेख किया है ओर उनका समय दिया है जैसे–‘हिंदी का प्रथम नाटक ( नहुष नाटक )–18746′ हिंदी का प्रथम समाचारपत्र ( सुधाकर )–1850? ; काशी में दो महीने का भूकंप–श8317’ | इन्हीं लोकिक तथा अलौकिक, साहित्यिक और साहित्येतर घटनाओं के उल्लेखों के बीच उन्होंने यह भी लिग्वा कि ‘हिंदी नए चाल में ढहलौ–1873? । इससे स्पष्ट है कि मारतेंदु हिंदी के नए रूप को इतने असाधारण महत्त्व का समझते थे कि उसे संसारप्रतिद्ध घठनाओ के समकक्ष रखने मै उनको कोई सकोच न था |
भारतेंदु के निबंध, ब्रजरत्न दास के द्वारा लिखी गयी पुस्तक है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुस्तक का कुल भार 26.53 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या 290 है। निचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है। पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।
Writer (लेखक ) | ब्रजरत्न दास |
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) | Hindi | हिंदी |
Book Size (पुस्तक का साइज़ ) |
26.53 MB
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Total Pages (कुल पृष्ठ) | 290 |
Book Category (पुस्तक श्रेणी) | Essay / निबंध |
पुस्तक का एक मशीनी अनुवादित अंश
“नए चाल में ठली हिंदी? के संत्रंध मै भारतेंदु का जीवन-चरित लिखनेबाले एक विद्वान् का कहना है कि उन्होंने इसके साथ ‘हरिश्रद्री ( हिंदी )” शब्द भी लिखा था, पर छापनेवालो की असात्रधानी से वह छूट गया ओर न छुत॒ सका | यदि यह बात सच है तो इसका त स्पर्य यह हुआ कि वह अपने को हिंदी की नई शैली का प्रतत्तक मानते थ और उनका उपयुक्त कथन दर्पोक्ति है। किंतु जो उस युग के इतिहास से परिचित है उनको इसमें गव॑ की ‘गध नहीं मिलती, प्रत्युत उन्हें मारतेंदु का यह कथन अक्वरश, सत्य प्रतीत होता है। स्वर्गीय आचार्य राम- चंद्र शुक्ल का निम्नलिखित कथन इस बात को और भी स्पष्ट करता है–
“संबत् १६३० ( अर्थात् सन् १८७३ ) में उन्होंने हरिश्चद्र मेगज़ीन!ः नाम की मासिक पत्रिका निकाली जिसका नाम र संख्यात्रो के उपरात ‘हरिश्र द्र- चद्रिक!! हो गया। हिंदी गद्य का ठीक परिष्कृत रूप पहले-पहल इसी “चंद्रिका? में प्रकट हुआ । जिस प्यारी हिंदी को देश ने अपनी विभूति समझा, जिसकों जनता ने उत्कंठापूर्वक दौड़कर अपनाया, उसका दशंन इसी पत्रिका मै हुआ। भारतेंदु ने नई सुघरी हुई हिंदी का उदय इसी समय से माना है। उन्होंने कालचक्र’ नाम की अपनी पुस्तक मैं नोट किया है कि ‘हिंदी नई चाल में ठढली, सन् १८७३ ई० |? इस हरिश्रंद्री हिंदी के आविर्भाव के साथ ही नए. नए. लेखक भी वैयार होने लगे ।
डिस्क्लेमर – यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं।