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Chut Aur Achut (छूत और अछूत) – Shripad Damodar Satwalekar

छूत और अछूत का प्रश्न इस समय बड़े भयानक रूपमे हम सब के सामने उपस्थित हुआ है। यदि हम इस प्रश्नका उत्तर योग्य रीतिसे नहीं दे सकेंगे तो भविष्यमें हमारी परिस्थिति अधिक बिकट हो जायगी । इस लिये हरएक भारतीय आर्य सज्जनको इस का विचार अवश्य करना चाहिये।

इस प्रश्न विषयमें प्राचीन शानियोंने कि प्रकार विप किया था, आर्यधर्म के प्राचीन ग्रंथों में इसका विचार किस ढंगले हुआ है और अन्य धर्म और अन्य पंथोक अर्वाचीन चालकोंने किस राति से इसका विचार किया इस बातके दर्शाने के लिये यह ग्रंथ लिखा गया है हमे विश्वास है कि यह प्रथ इस विषयकं लिये अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा।

सबसे प्रथम यह ग्रंथ श्रीमान महाराजा साहेव सयाजीराव गायकवाड बडोदा नरेश की महनीय प्रेरणास मराठीमे लिखा गया था ओर जिसको उस समय सबसे उत्तम पारितोषिक भी प्राप्त हुआ था। मराठी भाषामे यह कईवार छपचका है, और गजराती भाषा में इसका भाषातर प्रसिद्ध हो चुका है। और उन भाषाओमे इस ग्रंथ ने विचारोमे बडा परिवर्तन उत्पन्न किया है। अब यह इसका हिंदी भाषानुवाद प्रसिद्ध होता है और हमें पर्ण आशा है कि इसभाषाके क्षेत्रमे भी यह वैसाही कृतकार्य होगा।

Writer (लेखक ) श्रीपाद दामोदर सातवळेकर
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) Hindi | हिंदी
Book Size (पुस्तक का साइज़ )
3.74 MB
Total Pages (कुल पृष्ठ) 146
Book Category (पुस्तक श्रेणी) Uncategorized

इस पुस्तक के लेखक श्री श्रीपाद दामोदर सातवळेकर जी है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुस्तक का कुल भार 3.74 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या 146 है। निचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है।  पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।

पुस्तक का एक अंश

थेन देवा न वियन्ति ना से विद्विषते मिथ, ॥
तत कृण्मों ब्रह्म वो गहे संज्ञान परुषभ्य, ॥ ४॥
                                   अथवबेद अ ३। ३० ॥

जिससे विद्वान लोग विभक्त न हो ओर जिससे वे एक दूसरे का बेर न कर, एसा ( पज्य ओर उत्तम) ज्ञान हम तम्हार घरके तथा सब लोगो का देते ह।

 १ “ हें दयाल परमेश्वर ! एकता को बढाने वाला ओर द्वेष का नाश करने वाला उत्तम ज्ञान जा तने लोगा का दिया हैं, वह सारी जनता का मिले आर सदबद्धि तथा बन्धभाव बढ़े | सब लोगोके अंत,करण में एक दूसर के प्रति प्रम की वृद्धि होवे, और इससे सहानुभति बढ़कर लोग सार्वजनिक उन्नति कर लेने के योग्य होवे।

हज़ार वर्षों से भिन्न भिन्न जातियों का जन्मसिद्ध उच्चनीच भाव और इसीकी अनगामी छत अछत जारी है | इतिहासका ध्यान- परवेक अवलोकन करने से मालम होगा कि जैसे जैसे हम प्राचीन काल की ओर दरशिक्षेप करंगे वेसेही हम इस भेद भाव की मात्रा कम दिखाई देगी । इसी प्रकार जैसे जेले हम आधनिक काल की ओर बढेंग बेसे ही उसकी मात्रा बढती हुई दिखाई देगी ।
३ छुत अछत का व्यवहार ओर जन्मसिद्ध उच्चता ओर नीचता का विचार हमारे भारतवर्ष में किसी विचित्र घटना के कारण चल पड। होगा। ऐसा विचार ओर किसी देश में नहीं दिखाई देता |

डाउनलोड छूत और अछूत भाग – १  
डाउनलोड छूत और अछूत भाग – 2  
छूत और अछूत भाग – १ ऑनलाइन पढ़े 
छूत और अछूत भाग – 2 ऑनलाइन पढ़े
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सनातन धम में जो छूत और अछूत का व्यवहार हैं | वह ईसाई ओर इसलामी में नहीं दिखाई देता । भारत निवासी बोद्ध घर्मियों मं इसका कछ थोडा प्रचार हे, पर भारतवर्ष के बाहर जिन देशों में बोंद्ध धर जारी हैं उनमे उसका नाम निशान तक नहीं दिखता | बोद्ध धर्म के प्राच्चीन प्रंथो से इस बात का पता नहीं चलता की सब मानव संखार को अपन धर्म में लाने को से करनेवाले भगवान व॒द्ध को यह प्रथा पसंद थीं। इस यर से निश्चित रूप से कह सकते हैं कि असली बोद्ध धर्म को यह प्रथा मान्य नही थी। यदि हम कहे कि भारतनिवासी बोड- धर्मियों मे जो छूत और अछूत का विचार हैं वह उनके हिंदुओं के सन्निध रहने का फल हे तो अनुचित न हागा। पुराने ढंग पर चलने वाल पारसियों में धर्म कार्यों के समय छत अछत का कुछ विचार गहता हैं ।

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