हजार पहेलियाँ – किसी व्यक्ति की बुद्धि या समझ की परीक्षा लेने वाले एक प्रकार के प्रश्न, वाक्य अथवा वर्णन को पहेली (Puzzle) कहते हैं जिसमें किसी वस्तु का लक्षण या गुण घुमा फिराकर भ्रामक रूप में प्रस्तुत किया गया हो | इस पुस्तक में आपको हजारो पहेलियों का संग्रह मिलता है। इस पुस्तक के लेखक श्री मुन्नालाल मिश्र जी है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुस्तक का कुल भार 4.14 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या 304 है। निचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है। पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।
Writer (लेखक ) | मुन्नालाल मिश्र जी |
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) | Hindi | हिंदी |
Book Size (पुस्तक का साइज़ ) |
4.14 MB
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Total Pages (कुल पृष्ठ) |
304
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Book Category (पुस्तक श्रेणी) | Uncategorized |
पुस्तक का एक अंश
हज़ार पहेलियाँ
१-हाथी कैसा सिर है जिसका, मानुस सा है अग।
मूसा जिसका वाहन रहता, अरुण देह का रंग ॥
२-वीणा जिसके कर में रहती, वाहन जिसका मोर ।
धरो ध्यान तुम उस देवी का, करो न अब तुम शोर ॥
३-सात नेत्र अरु दो सहस, तीन सींग जी चार।
आठ चरण दो पूँछ है, पंडित करो, विचार ॥
४-अम्बु सुता रिपु तासु रिपु, ता रिपु को रिपु जान ।
ता तनया पति विन सखी, विकल होत है प्रान ॥
५-कनज उलट ताकी सुता, ताके पति को तात ।
अर्ध नाम ताको अमर, सो कर लेवी हाथ ॥
६-अर्ध नाम दरवार को, अरु कागज को तात ।
सो हमको देवू करो, जामें होय सनात ॥’
७-मलिन नयन कर देखिये, सब कछ मवहीं भाय।
अमल दृष्टि जय रवि लह्यो, तब रवि ही दरसाय ॥
-एक ऑख उसमें भी जाला, दिन में वन्द रात उजियाला॥
९-मन बुद्धि इन्द्रिय प्राण नहीं, पञ्च भूत हूँ नाहिं।
– शाता ज्ञान न ज्ञेय कछु, नहिं सब हूँ सब माहि ॥
१०-ऊँच नीच निरगुण गुनी, रगनाय अरु भूप।
हूँ घर, यट कासों कहूँ, सय आनन्द स्वरूप ॥
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