कबीर दोहे, कबीर जी के द्वारा लिखी गयी महान कृति है। जिसमे उन्होंने तथ्य को अपने भाषा में लिखा है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुस्तक का कुल भार 280 KB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या 36 है। निचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है। पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।
Writer (लेखक ) | कबीरदास |
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) | Hindi | हिंदी |
Book Size (पुस्तक का साइज़ ) |
280 KB
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Total Pages (कुल पृष्ठ) | 36 |
Book Category (पुस्तक श्रेणी) | Educational / शिक्षात्मक |
पुस्तक का एक अंश
राम-नाम के पटतरै, देवे को कछु नाहि |
क्या ले गुर संतोषिए, हौस रही मन माहि ||1||
भावार्थ – सद्गुरु ने मुझे राम का नाम पकडा दिया है | मेरे पास ऐसा क्या है उस सममोल का, जो गुरु को दूँ ?क्या लेकर सन्तोष करूँ उनका ? मन की अभिलाषा मन में ही रह गयी कि, क्या दक्षिणा चढाऊँ ? वैसी वस्तु कहाँ से लाऊँ ?
सतगुरु लई कमांण करि, बाहण लागा तीर |
एक जु बाह्या प्रीति सूं, भीतरि रह्या शरीर ||2||
भावार्थ – सदगुरू ने कमान हाथ में ले ली, और शब्द के तीर वे लगे चलाने | एक तीर तो बडी पीति से ऐसा चला दिया लक्ष्य बनाकर कि, मेरे भीतर ही वह बिध गया, बाहर निकलने का नहीं अब |
सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपगार |
लोचन अनंत उघाडिया, अनंत-दिखावणहार ||3||
भावार्थ – अन्त नहीं सद्गुरु की महिमा का, और अन्त नहीं उनके किये उपकारों का , मेरे अनन्त लोचन खोल दिये, जिनसे निरन्तर में अनन्त को देख रहा हूँ।
बलिहारी गुर आपण, द्यौहाडी के बार |
जिनि मानिष नैं देवता, करत न लागी बार ||4||
भावार्थ – हर दिन कितनी बार न्यौछावर करूँ अपने आपको सद्गुरू पर, जिन्होंने एक पल में ही मुझे मनुष्य से परमदेवता बना दिया, और तदाकार हो गया मैं |
गुरु गोविन्द दोऊ खडे, काके लागूं पायं ।
बलिहारी गुरु आपणे, जिन गोविन्द दिया दिखाय ||5||
भावार्थ – गुरु और गोविन्द दोनों ही सामने खड़े हैं , दुविधा में पड़ गया हूँ कि किसके पैर पकडूं ॐ सदगुरू पर न्यौछावर होता हूं कि, जिसने गोविन्द को सामने खडाकर दिया, गोविनद से मिला दिया |
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