कबीर वाणी सुधा, डॉ पारसनाय तिवारी के द्वारा लिखी गयी पुस्तक है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुस्तक का कुल भार 35 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या 323 है। नीचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है। पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।
Writer (लेखक ) | डॉ पारसनाय तिवारी |
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) | हिंदी |
Book Size (पुस्तक का साइज़ ) |
4.98 MB
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Total Pages (कुल पृष्ठ) | 321 |
Book Category (पुस्तक श्रेणी) | Uncategorized |
पुस्तक का एक मशीनी अनुवादित अंश
आज से लगभग पौने छह सौ वर्ष पहले किसी जलाशय के पाम नीरू जुलाहे और उसकी पत्नी नीमा को एक नवजात शिशु प्राप्त हुआ। नौमा का गौना उसी दिन हुआ था, अतः शिशु को साथ में जाने में लोकलाज का भय था, किन्तु थोड़े वाद-विवाद के पश्चात् पति-पत्नी दोनो उसे अपने घर ले जाकर पानने-पोसने के लिए सहमत हो गये। नीरू तहला (काशी में कबीरचौरा के सान्निवट) पहुंचने पर बुल-परम्परा के अनुसार काजी को बुलवाकर बच्चे का नाममारण सस्कार सम्पन्न पराया गया। पिताब (कुरान शरीफ) योजने पर इस बच्चे का नाम कवीर निकला जो अरवी ने महान् परमात्मा का ही बोधक एक शब्द है। कबीर के जन्म के संबंध में यह कहानी बहुत समय से प्रचलित है।
कबौर-वाणी-सुधा. सगल जनम सिवपुरी गंवाइआ।
मरती वार मगहर उठि आइआ॥
जिससे स्पष्टतः केवल ‘मरतो बार’ उनके मगहर में माने का संकेत मिलता है।
(२) डॉ. मुमा झा ने निम्नलिखित तकों के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि कबीर पा जन्म मिथिला में हुमा था और वही उन्होंने अपने जीवन का भारम्भिक अंश भी व्यतीत किया पा(क) मिथिला में मदनी न खाने वालो को ‘वैष्णव’ कहा जाता है, चाहे वे प्राक्ति के उपामक ही क्यों न हों और इसके विपरीत ‘शाक्त’ का अर्थ वहाँ ‘मत्स्यमांसमोनी’ किया जाता है । मैथिलियों की इस चलन से कबीर पूर्णतया परिचित जान पढ़ते हैं।
(स) ‘बीजक’ के एक पद में कहा गया है
ज्यों मैथिल को सच्चा यास।
त्योहि मरन होय मगहर पास ।।
(ग) ‘सर्वज्ञसागर’ नामक एक कवीसंयी ग्रन्थ में कबीर के पक्ष से यह उक्ति मिलती है।
डिस्क्लेमर – यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं।