हिन्दी में अनेकानेक कहानी-संग्रहों के होते हुए भी इस एक और संग्रह को तेयार करके प्रकाशित करवाने का वास्तविक कारण रुचि- वचित्य ही हो सकता है। इस संग्रह कौ कहानियों का चुनाव करते समय केवल इसी बात को ध्यान में रखा गया है कि वे वास्तव में सुन्दर, मनोरंजक तथा कलापूर्ण हों। यह संग्रह न तो हिन्दी-कहानी-साहित्य का प्रतिनिधि संग्रह कहा जा सकता हैं और न डसमें दी गई कहानियों का चुनाव ही इस दृष्टि- कोण से किया गया है |
पुस्तक का कलेवर बढ़ जाने की आशंका से इस संग्रह में कहानियों की संख्या भी नहीं बढाईं जा सकी, जिससे अनेकों सुप्रतिष्ठित महत्त्वपूर्ण कहानी-लेखकों की रचनाओं को स्थान नहीं दिया जा सका | पुनः प्रगतिशील परम्परा की रचनाओं को लेकर आज भी वाद-विवाद समाप्त नहीं हुआ है तथा उसमें निरन्तर बढने वाले विभागों और उपभेदों के उपयुक्त प्रतिनिधित्व की समस्या भी सामने आईं; एवं उस प्रकार की रचना को न चुनना हो हमने श्रयस्कर समझता ।
कबीर वाणी सुधा, डॉ पारसनाय तिवारी के द्वारा लिखी गयी पुस्तक है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुस्तक का कुल भार 11.82 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या 196 है। नीचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है। पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।
Writer (लेखक ) | डॉ. रघुवीर सिंह |
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) | हिंदी |
Book Size (पुस्तक का साइज़ ) |
11.82 MB
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Total Pages (कुल पृष्ठ) |
196
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Book Category (पुस्तक श्रेणी) | Story / कहानी |
पुस्तक का एक मशीनी अनुवादित अंश
व्यस्तता से पूर्ण समयाभाव वाले इस काल में कहानी-साहित्य की आशा- तीत उन्नति तथा वृद्धि हुई है । कहानी-लेखन आज साहित्य मे एक स्वतन्त्र अनूठी कला के रूप मै विकसित हो चुका है और दिनोदिन उसका प्रस्फुटन होता जा रहा है। साहित्य के अन्य अंगों की अपेक्षा इसकी लोकप्रियता कही अधिक बढ़ी हुई है, जिसमें आधुनिक काल की परिस्थितियाँ एवं उसकी विशिष्ट प्रदृत्तियाँ विशेष रूप से सहायक हुई हैं। वास्तव में यह आधुनिक कहानी सुविस्तृत लोकप्रिय उपन्यासों का ही संक्षित स्वरूप हे, परन्तु अपने पिछले स्वतन्त्र कल्लात्मक विकास के कारण आज साहित्य-शातह्न में इसने अपना अलग ही विशिष्ट स्थान बना लिया है।
सारी ऐतिहासिक या साहित्यिक खोज के बाद भी किसी प्रकार यह बात निश्चित रूप से नहीं कही जा सकती कि कथा-साहित्य की सब प्रथम उत्पत्ति कहाँ और किस रूप में हुई थी | परन्तु यह बात तो निर्विवाद रूपेण मानी जा सकती हे कि इसका अस्तित्व, किसी भी रूप में क्यों न हो, बहुत ही प्राचीन काल से चला आया है और सब देशों में कहानी-साहित्य विद्यमान रहा हे। साहित्य के अन्य अंगों की ही तरह कथा-साहित्य के रूप, कला, आदि पर भी देश, काल, संस्कृति एवं स्थानीय परिस्थितियों का प्रभाव पड़ता रहा है ओर विभिन्न स्थानों मे वद अलग-अलग रूप में विकसित हुआ है। आज का उसका वह प्रचलित रूप उसके प्राचीन स्वरूप से बहुत ही भिन्न हे |
लघु कथा एक ऐसा आख्यान है जो इतना छोटा हो कि एक ही बेठक में पूरा पढ़ा जा सके, जो उसके पाठक पर किसी एक प्रभाव को ही उत्पन्न करने के लिए लिखा गया हो और ऐसा निर्दिष्ट प्रभाव उत्पन्न करने में सहायक न हो सकने वाली सारी बातें जिसमें से छोड़ दी गईं हों, तथा जो स्वतः सर्वथा सम्पूर्ण हो ।
डिस्क्लेमर – यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं।