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Kranti Kaise Ho (क्रांति कैसे हो) PDF – Ramnandan Mishr

“क्रांति कैसे हो” हजारीबाग जेल में उस समय लिखा गया जब सन् ४२ की क्रांति ठंडी पड़ चुकी थी और कार्यकर्ता निराश और दुखी हो रहे थे। पुस्तक के साथ मेरे जीवन का एक अध्याय गुया हुआ है, जिन्हें प्रकाश में लाने का समय अभी नहीं आया है। जेल से यह पुस्तक चोरी से तीव्र विरोधों के बीच याहर निकली और इसके अंग्रेजी तथा बंगला संस्करण बंगाल की कांग्रेसी सरकार ने जप्त कर लिये। इस पुस्तक का ही जीवन क्रांतिकारी-जीवन रहा है।

इस पुस्तक के लेखक श्री रामनन्दन मिश्र जी है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुस्तक का कुल भार 1 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या 108 है। निचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है।  पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।

Writer (लेखक ) रामनन्दन मिश्र
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) Hindi | हिंदी
Book Size (पुस्तक का साइज़ )
1 MB
Total Pages (कुल पृष्ठ) 108
Book Category (पुस्तक श्रेणी) Educational / शिक्षात्मक 

पुस्तक का एक अंश

क्रांति की आवश्यकता  – विश्व के रंगमंच पर मानव के आने की और धीरे-धीरे सारे संसार के एक छन समाद बन जाने की कहानी सबसे दिलचस्प और नाटकीय है। छोटे-से मानव ने जब आँस सोती तो देखा भरे-बड़े जानवर है, घनघोर यन है, क्षण-क्षण प्राणों का चंकट है। पर उसके माये में नई शक्ति थी सोचने की, शरीर में दो हाथ थे। धीरे-धीरे हाथों के उपयोग से अनुभव से उसने अपने से कई गुने बलशाली पशुओं को परास्त किया; धूप, वर्षा और ठंडक से अपने बचाप का उपाय निकाला।

सबसे कठिन समस्या मानव के सामने सदा से रही है, जीवनोपयोगी साधनौ-यानी भोजन, वन, पर इयादि के जुटाने की। तरह तरह के प्रव, सान, मिट्टी, जत, हवा, सूरज, चाँद को अपनी छाती पर लेकर प्रहति नाचती रहती है, पर इसमे मानव को वयाचीद के दररनों से, सूर्य की रोशनी से इन्सान के पैट नही भरते, पहिनने के क्पदे नही मिलते। उसके सामने समस्या थी और है कि संसार के पदाथों को अपने अनुाल कैसे बनाया जाय।

इस पृथ्वी पर पैर रसने दो जीवन-यात्रा के लिए आवश्यक साधन जुटाने की कठिन जजीर मानव के परों में बस गई। इन्हें तोरे बिना, वह न सास्कृतिक विरास कर पाता है, न सामाजिक । शान की वृद्धि ज्ञान की प्यास तेज करने के साथ उसके निराकरण के लिए विशाल मानव के जीवन में अवकाश और बौद्धिक विकास के साधन नहीं जुटा सकी। साहित्य दर्शन, कला, सभी मही भर अवकाश प्राप्त वर्ग के हायों में बँधै रहे ।

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