सम्पूर्ण महाभारत – इस महाग्रंथ के लेखक श्री वेदव्यास जी है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुस्तक का कुल भार 271 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या 1665 है। निचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है। पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।
Writer (लेखक ) | श्री वेदव्यास |
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) | Hindi | हिंदी |
Book Size (पुस्तक का साइज़ ) |
6.17 MB
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Total Pages (कुल पृष्ठ) | 226 |
Book Category (पुस्तक श्रेणी) | Religious / धार्मिक , हिन्दू धर्म / Hinduism |
संक्षिप्त महाभारत का एक अंश
श्री नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्।
देवी सरस्वती व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॥
अन्तर्यामी नारायणस्वरूप भगवान् श्रीकृष्ण, उनके सखा नर-रख अर्जुन, उनकी लीला प्रकट करनेवाली भगवती सरस्वती और उसके वक्ता भगवान् व्यासको नमस्कार करके आसुरी सम्पत्तियोंका नाश करके अन्तःकरणपर विजय प्राप्त करानेवाले महाभारत ग्रन्थका पाठ करना चाहिये।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।
काॐ नमः पितामहाय। ॐ नमः प्रजापतिभ्यः।’
ॐ नमः कृष्णद्वैपायनाय । ॐ नमः सर्ववित्रविनायकेभ्यः।
लोमहर्षणके पुत्र उप्रश्रवा सूतवंशके श्रेष्ठ पौराणिक थे। एक बार जब नैमिषारण्य क्षेत्रमें कुलपति शौनक बारह वर्ष का सत्संग-सत्र कर रहे थे, तब उप्रश्रवा बड़ी विनयके साथ सुखसे बैठे हुए व्रतनिष्ठ ब्रह्मर्षियों के पास आये। जब नैमिषारण्यवासी तपस्वी ऋषियों ने देखा कि उप्रश्नवा हमारे आश्रममें आ गये है, तब उनसे चित्र-विचित्र कथा सुनने के लिये उन लोगोंने उने घेर लिया। उग्रश्रवाने हाथ जोड़कर सबको प्रणाम किया और सत्कार पाकर उनकी तपस्या के सम्बन्धमें कुशल-प्रश्न किये। सब ऋषि-मुनि अपने-अपने आसनपर विराजमान हो गये और उनके आज्ञानुसार वे भी अपने आसन पर बैठ गये। जब वे सुखपूर्वक बैठकर विश्राम कर चुके, तब किसी ऋषि ने कथा का प्रसंग प्रस्तुत करने के लिए उनसे यह प्रश्न किया – ‘सुतनन्दन ! आप कहाँ से आ रहे है? आपने अब तक का समय कहाँ व्यतीत किया ?
उपभवाने कहा, ‘मैं परीक्षित-नन्दन राजर्षि जनमेजय के सर्प-सत्रमें गया हुआ था। वहाँ श्रीवैशम्पायनजीके मुखसे मैने भगवान् श्रीकृष्ण-पायनके द्वारा निर्मित महाभारत ग्रंथ की अनेकों पवित्र और विचित्र कथाएं सुनीं। इसके बाद बहुत-से तीथों और आश्रमों में घूमकर समन्तपक्षक क्षेत्रमें आया, जहाँ पहले कौरव और पाण्डवोंका महान् युद्ध हो चुका है। वहाँ से मैं आप लोगों का दर्शन करने के लिये यहाँ आया हूँ। आप सभी चिरायु और ब्रह्मनिष्ठ है। आपका ब्रह्मतेज सूर्य और अग्नि के समान है। आप लोग खान, जप, हवन से निवृत होकर पवित्रता और एकाग्रता के साथ अपने-अपने आसानपर बैठे हुए है। अब कृपा करके बतलाइये की मैं आप लोगो को कौन-सी कथा सुनाऊ। ‘ सम्पूर्ण कथा पढ़ने के लिए निचे डाउनलोड लिंक पर click करें
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