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Marwadi Bhajan Sagar (मारवाड़ी भजन सागर) PDF – Raghunathprasad Singhania

मारवाड़ी भजन सागर – साहित्य मानव-जीवन को उच्च शिखर पर पहुंचाता है। साहित्य से ही जातियों की श्रेष्ठता मानी जाती है। साहित्य मनुष्य को इस लोक से लेकर परलोक तक का अनुभव करा देता है। साहित्य ने ही आर्य-जाति का महत्व संसार को समझाया है। यदि हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों और त्रिकालज्ञ योगियों ने वेद, दर्शन, पुराण और उपनिपदादि शास्त्रों का निर्माण न किया होता, तो आज संसार की सभ्य कही जाने वाली जातियाँ कभी मी परतंत्र भारतको श्रद्धा की दृष्टिले नहीं देखतीं । हमारे पूर्वजों के रचित साहित्यका ही यह प्रभाव था कि देवता भी इस पुण्य-भूमि भारतमें जन्म ग्रहण करनेके लिये लालायित रहा करते थे।

राजस्थान को भी सहित्य ने ही इतना ऊँचा उठाया था। वहाँ के साहित्यने ही वहाँ के जीवनको आदर्श बनाया था। साहित्य ने ही वहाँ वीरों में वीरता का, सतियों में सतीत्व का, क्षत्रियों में क्षात्र-धर्मका, वैश्यों में दानशीलता का तथा प्रजा में कर्त्तव्य-परायणता का मंत्र फूंका था । वहाँ के चारणों, भाटों और बारहठोंने देशको कर्तव्य-परायण, समृद्धिशाली, स्वतंत्रताका पुजारी बनाने के लिये ही देवी भारती का आह्वान किया था।

इस पुस्तक के लेखक श्री रघुनाथप्रसाद सिंहानिया जी है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुस्तक का कुल भार 20.89 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या 792 है। निचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है।  पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।

Writer (लेखक ) पंडित जवाहरलाल नेहरू, रामचंद्र टंडन
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) Hindi | हिंदी
Book Size (पुस्तक का साइज़ )
37.54 MB
Total Pages (कुल पृष्ठ) 738
Book Category (पुस्तक श्रेणी) Literature / साहित्य

पुस्तक का एक अंश

राजस्थान के त्यागवीरों ने “जीवन और मृत्यु” के सवाल को हल कर लिया था। वे जोना और मरना दोनों सीख गये थे। उनके लिये यह बायें हाथ का खेल था। यही कारण था कि मुसलमानों के दुर्धर्प धक्के को भी राजस्थान सह गया। आज मुगलों और पठानों के वंशज, इस संसार में यदि कहीं पर होंगे भी तो अपनी जिन्दगी की घटती के दिन किसी तरह पूरा कर रहे होंगे पर महाराणा प्रताप की सन्तानें आज भी अपने उसी सिंहासन पर विराजमान हैं। संसार के इतिहास में मेवाड़ के राजवंश से अधिक पुराना राजबंश खोजने पर भी शायद ही मिले । महाराणा प्रतापकी उदारता पर मुग्ध होकर नवाब खानखाना ने जो कुछ कहा था वह अक्षरशः सत्य निकला कि –

ध्रम रहसो रहसी धरा, खिस जासी खुरसाण ।
अमर विसम्भर औपरे, निहचै रहसी राण ॥

जिस राजस्थान में वीरता, निर्मीकता और सत्यता की पताका सैकड़ों वर्षों तक आकाश में फहराती रही है, उसके इतिहास में साहित्योन्नतिका पृष्ठ भी कोरा नहीं, वरन् सुवर्णाक्षरों में लिखा जाने योग्य है । जिस देश का इतिहास इतना उज्ज्वल और भारतीय मात्र के गौरव कर सकने लायक गाथाओंसे भरा हो, वहाँ साहित्य पनपा ही नहीं, यह असम्भव है। परन्तु दु:ख तो इस बात का है कि राजस्थानियों ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया, यदि वे इस ओर जरा ध्यान देते तो देखते कि वे अपने चमकते हुए रत्नोंको चाहे जहां रखकर विद्वानों में चकाचौंध उत्पन्न कर सकते हैं।

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