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Rajasthani Lok Geet (राजस्थानी लोकगीत) – Dr. Purushottalam Menaria

राजस्थानी लोकगीत – राजस्थानी लोकगीतो मे हमारे लोक-जीवन से सम्बन्धित कोई भी विषय अछूता नहीं छोडा गया है । इनमे लोक-जीवन सम्बन्धी प्रत्येक वस्तु अथवा प्रसग का विस्तृत और सजीव चित्रण किया गया है । हमारी वेश-भूषा और आभूषणो का, खाद्य पदार्थों का, भवन के प्रत्येक भाग का, विविध प्रकार के वाहनो ओर क्रीडायो का, विभिन्न त्यौहारो और देवी-देवतापो का विस्तृत वर्णन राजस्थानी लोकगीतो मे पाया जाता है । साथ ही हमारे मानव समाज के प्रत्येक मनोभाव तक का सूक्ष्म चित्रण इन लोकगीतो मे हुआ है । बाल सुलभ भावनामो, हर्ष-शोक, मिलन-विरह, राग और वैराग्य सभी भावनाप्रो का सूक्ष्म वर्णन मिलता है । कई गीत लोक-कथा-काव्य के रूप मे मिलते है जिनमे मार्मिक कहानियो के उतार-चढाव देखे जा सकते है। कई गीत ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होते है । इन गीतो के आधार पर हम अपने भूतकाल को भी अङ्कित कर सकते है ।

 

Writer (लेखक ) डॉ पुरुषोत्तमलाल मेनारिया
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) Hindi | हिंदी
Book Size (पुस्तक का साइज़ )
6.17 MB
Total Pages (कुल पृष्ठ) 226
Book Category (पुस्तक श्रेणी) Unknown

इस पुस्तक के लेखक श्री डॉ पुरुषोत्तमलाल मेनारिया जी है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुस्तक का कुल भार 6.17 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या 226 है। निचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है।  पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।

पुस्तक का एक अंश

लोकगीत हमारी जनता के स्वाभाविक उद्गार है, जिनका प्रादुर्भाव सुख-दुःख, हर्प-शोक प्रादि विविध अनुभूतियो के परिणामस्वरूप हुआ है। हमारी जनता की वास्तविक स्थिति और सस्कृति को समझने के लिए सम्बन्धित लोकगीतो का अध्ययन आवश्यक है इसलिए आधुनिक काल मे देश-विदेश के प्रमुख विद्वानो का ध्यान भारतीय लोकगीतो के संग्रह और अध्ययन की ओर आकर्षित हुआ है।

राजस्थान अत्यन्त प्राचीन काल से ही एक मुसस्कृत और साहित्य-सम्पन्न प्रदेश रहा है । प्राचीनतम भारतीय सभ्यता के अवशेष राजस्थान मे ही मिलते हैं। साय ही राजस्थान में समय-समय पर विभिन्न मानव-जातियो का प्रागमन होता रहा है जिसका प्रभाव यहा के साहित्य एव सस्कृति पर भी पड़ा है । राजस्थान की प्राकृतिक स्थिति में भी पर्याप्त विविधता है। राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी भाग मे सुविस्तृत मरुभूमि है। राजस्थान का दक्षिणी-पूर्वी भाग उपजाऊ खेतो से लहराता रहता है । राजस्थान के मध्य में अरावली पर्वत-श्रेणी है जिसमे हरी-भरी घाटियां और सैकडो झोलो की शोभा राजस्थान के जन-जीवन को आनन्दित करती है। इस प्रकार राजस्थान के विविध प्रकार के प्राकृतिक वातावरण मे पोपित होने वाले लोकगीतो की निरन्तर प्रवाहमयी धारा भी विविधता से पूर्ण है।

वसत में राजस्थान की धरती नवीन शृगार धारण करती है तो हमारी जनता भी गैर और घूमर जैसे लोकनृत्यो के साथ गाने लगती है। गर्मी की ठण्डी रातो मे कैंट सवार “कतारिये” अपनी लम्बी यात्रा गीतो के सहारे ही पूरी करते है। श्रावण-भादो की बरसाती रातो मे जब ‘तीजणी’ प्रियतम की राह देखती हुई व्याकुल हो उठती है तो लोकगीतो मे उसके उद्गार फूट पड़ते हैं । इसी प्रकार नवरात्रो में देवी-पूजा के समय पर अथवा रातीजगो मे पूर्वजो के चरित्र बखाने जाते हैं तब वीर रसात्मक लोकगीतो की धारा प्रवाहित हो जाती है।

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