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Ramashwamegh Uttar Ramayan (रामाश्वमेध उत्तर रामायण) PDF

रामाश्वमेध उत्तर रामायण – भक्ति-रसामृत-पान का सुअवसर प्रभु के असीम अनुग्रह पर अवलम्बित है। ब्रह्म की निर्गुण-भक्ति और सगुण-भक्ति, दोनों मेरे मानस को सदा से मुग्ध करती रही हैं। निर्गुण-भक्ति जहाँ एक ओर अपनी रहस्यात्मक गोपनीयता के फलस्वरूप मन को रिझाती रही है, वहीं सगुण-भक्ति अपनी मधुरता और सहजता से तादात्म्य प्रदान करती रही है। राम-कथा-साहित्य के प्रति मेरे हृदय में एक रागात्मक प्रेरणा का अंकुरण मेरी जननी ने तुलसीदास के गीतों को गुनगुना कर बाल्यावस्था में ही कर दी थीं। परिवार में सदा साहित्यकारों, संगीतज्ञों तथा साधु-संतों के समागम से मेरा एक भक्तिमय मानस निर्मित हो गया था।

इस पुस्तक के लेखक श्री डॉ. नगेन्द्र जी है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुस्तक का कुल भार 23.74 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या 809 है। निचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है।  पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।

Writer (लेखक ) डॉ. विद्याधर मिश्र, प्रो. इन्द्रजीत पाण्डेय
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) Hindi | हिंदी
Book Size (पुस्तक का साइज़ )
23.74 MB
Total Pages (कुल पृष्ठ)
809
Book Category (पुस्तक श्रेणी) धार्मिक / Religiousहिंदू – Hinduism

पुस्तक का एक अंश

वेदों का समस्त ज्ञान भंडार अकेले ‘यज्ञ’ ही में निहित है। वैदिक ज्ञान यज्ञों से ही ओत-प्रोत है। यज्ञ शब्द ‘यज्‌” धातु से बना है । यज धातु का अथ है देवपुजा, सद्भतिकरण और दान। समस्त जड़ और चेतन जगत्‌ को परस्पर एक दूमरे से लाभ पहुँचाना ही यज्ञ है। “यज्ञो वे श्रेष्ठतमं कर्म ।”? अर्थात्‌ यज्ञ श्रेष्ठतम कर्म कहा ग़या है। इन यज्ञों के तीन विभाग हैं –कम- यज्ञ 2, ज्ञानयज्ञर और उपासना? यज्ञ । इन्हीं तीनों प्रकार के यज्ञों मे वेद का लौफिक और पारलौकिक ज्ञान चरितार्थ होता है। ब्राह्मण और सूृत्र ग्रन्धों में यज्ञों के अनेकों प्रकार विस्तार से वर्णित हैं, परन्तु बीज रूप से अथवंवेद में कातपय यज्ञों का वर्णम निम्नलिखित है–

राजसूयं वाजपेय मग्निष्टोमस्तदध्वर: ।
अर्काश्वमेधावुच्छिष्ट जीवबहिमें दिन्तम: ।।७॥
अग्न्याधेयमथो दीक्षा कामप्रश्छन्दसा सह: ॥८5॥
अग्निहोत्रं च श्रद्धा च वषदकारो ब्रतं तपः ॥६॥
चतुहोतार आप्रियश्चातुर्मास्थानि नीविदः॥

इन मंत्रों में राजसूय, वाजपेय, अग्निष्टोम, अश्वमेध, अग्निहोत्र, अग्न्याधान और चातुर्मास्य का उल्लेख आता है। अथवंबेद के गोपथ ब्राह्मण मे भी इन –
1. शतपथ ब्राह्मण–१-७-४५

2. षोडश संस्कार विवाह, संतान, शिक्षा, आहार, वस्त्र, गृह, समाज, राज्य, कृषि, पशुपालन, संगीत, गणित, भूगोल, ज्योतिष, वेभव, रसायन, भवन निर्माण, यन्त्र, शस्त्र, वाहन और युद्ध विद्या आदि पदार्थ और विद्याएं ।

3. ईश्वर, जीव, पुनजन्म, कर्मफल, सुष्टि, प्रलय, वर्ण, आश्रम और स्वाध्याय भादि ।

4. सदाचार दया, प्रेम, दर्शन, भक्ति, वेराग्य, योग और समाप्रि आदि क्रियाएं

यज्ञों का जिस क्रम से वर्णन है, वह उल्लेखनीय है–अग्न्याधान, पूर्णाहुति, अग्निहोत्र, राजसूय, वाजपेय, अश्वमेध, पुरुषमेध, सर्वमेध ।
‘राज्ञ: एवं सूयं कम ।! राजा वे रायसूयेन इष्टवा भवति ।–अर्थात्‌ राजसूय से ही राजा होता है। इसी क्रम में ‘अश्वमेध’ यज्ञ की व्याख्या करते हुए शतपथ ब्राह्मण में स्पष्ट कहा गया है कि सभी देवता अश्वमेध में आते हैं अश्व- मेघ करने वाला सभी दिशाओं को जीतने वाला हो जाता है। ऐश्वर्य ही राज्य है और राष्ट्‌ ही अश्वमेध है एतदर्थ सम्राट के लिए अद्वमेध यज्ञ अवश्य करणीय है ।

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