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Hindi Muhavra Kosh | हिन्दी मुहावरा कोश PDF

 ‘मुहावरा’ शब्द मूलत अरबी भाषा का है और इसकी धातु है ‘हे-वाव-रे’, जिसका अर्थ है ‘लौटाना’, इसी से शब्द बनता है ‘हावर’, जिसका अर्थ है ‘बातचीत करना’, ‘प्रश्नोत्तर करना’ या ‘उत्तर का उत्तर देना’। ‘हावर’ का क्रियायंक संज्ञा रूप अरबी भाषा मे है ‘मुहावरत’ जिसका फारसी रूप मिलता है ‘मुहावर.’। ‘मुहावरा’ इसी का हिन्दी रूप है। उर्दू में लिखते हैं ‘मुहावरः’, किन्तु हिन्दी की तरह ही कहते हैं ‘मुहावरा’।

सस्कृत भाषा मे मुहावरो का प्रयोग तो है, किन्तु उनके लिए अलग से कोई स्वीकृत नाम नहीं है । यो कुछ लोग इसके लिए ‘वाग्रीति, ‘वाग्धारा’, ‘वाग्वृत्ति’, ‘भाषा-संप्रदाय’ आदि का प्रयोग करते है, किन्तु ये कदाचित् नये बनाये हुये शब्द है, सस्कृत साहित्य में इस अर्थ में कम से कम मुझे इनमे से किसी का भी प्रयोग नहीं मिला। संस्कृत काव्यशास्त्र की दृष्टि से सभी मुहावरे रूढा लक्षणा कहे जाते हैं, अर्थात् ये मूलत लक्षणा हैं, प्रयोग मे रूढ हो जाने के कारण इन्हे ‘रूढा लक्षणा’ के अतर्गत रखा जाता है। वस्तुत ‘रूडा लक्षणा’ रूह हो जाने के कारण अभिधा के समीप पहुंच जाती है, इसीलिए रूढा लक्षणा को अभिधा पुच्छभूता कहा जाता है। काव्यशास्तियो का इस परम्परागत मान्यता से थोडा हटते हए प्रस्तन प्रसग मे मैं यह कहना चाहंगा कि मुहावरे लक्षणा के अतर्गत आते हैं, किन्तु वे अपने जन्म से ‘रूदा लक्षणा’ नहीं होते।

प्रारम्भ में जब कोई मुहावरा नया-नया प्रचलित होता है या बनता है तो वह ‘प्रयोजनवती लक्षणा’ के अतर्गत आता है। और जब बहुप्रयुक्त होकर वह अपने विशिष्ट अर्थ मे रुढ हो जाता है, वह ‘रूढा लक्षणा’ के अतर्गत मा जाता है। इस स्थिति में आकर ही मुहावरे को ‘अभिधा पृच्छभता लक्षणा’ के अतर्गत माना जाना चाहिए।

Writer (लेखक ) डॉ भोलानाथ तिवारी
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) हिंदी
Book Size (पुस्तक का साइज़ )
28.6 MB
Total Pages (कुल पृष्ठ)
478
Book Category (पुस्तक श्रेणी) Educational / शिक्षात्मक 

पुस्तक का एक मशीनी अनुवादित अंश

मुहावरों का जन्म

सामान्य भाषा सामान्य प्रयोग करती है-वाचक शब्द का, वाच्यार्थ का। शब्द-शक्तियो की दृष्टि से कहना चाहे तो अभिधा शक्ति का । महावरो के जन्म का सबध इस सामान्य प्रयोग से नही है। जब वक्ता या लेखक अपने भावो की अपेक्षित अभिव्यक्ति में इस सामान्य प्रयोग अथवा सामान्य भाषा को असमर्थ पाता है तो वह सामान्य प्रयोग की कारा को तोडकर विचलन करता है। नये मुहावरो का जन्म इसी विचलन से होता है।

यह जन्म सामान्य बातचीत मे भी हो सकता है, काव्य-भाषा मे भी। मान लीजिए, कोई किसी से कहना चाहता है ‘यह कैसी रे तुम्हारी आदत ? सब देखो कहकर मुकर जाते हो’, किन्तु उसे लगता है कि इस सामान्य भाषा मे वह चुभन नहीं है, वह चोट नहीं है, जो वह अपनी अभिव्यक्ति मे भरना चाहता है, वह तुरन्त अपनी कल्पना के सहारे सादृश्य की सहायता लेता है और बोल उठता है ‘यह कैसी है तुम्हारी आदत ? जब देखो, यूक कर चाटने लगते हो।’ इस प्रकार एक मुहावरा जन्म लेकर उसकी अभिव्यक्ति मे मर्म भेदी चुभन भर देता है।

डिस्क्लेमर – यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं। 

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