प्रतापी आल्हा और उदल, महर्षि वेदव्यास के द्वारा रचित पुस्तक है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुस्तक का कुल भार 5.29 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या 208 है। निचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है। पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।
Writer (लेखक ) | महर्षि वेद व्यास |
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) | Hindi | हिंदी |
Book Size (पुस्तक का साइज़ ) |
5.29 MB
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Total Pages (कुल पृष्ठ) | 208 |
Book Category (पुस्तक श्रेणी) | इतिहास / History |
पुस्तक का एक अंश
करोड़ों वर्ष व्यतीत हुये। उस बज्वल अतीत काल में जव कल्पारन्म हो रहा था ब्रह्मा मानसी-सृष्टि में लीन थे तथा वायु, सोम, सूर्यादि ऋपियों का वैदिक-तत्व-ज्ञान समुनति के उच्च शिखर पर आलोकित हो रहा था-इस पवित्र वंश का प्रवर्तक महा तेजस्वी चन्द्रमा अपनी अपार सुन्दरता से लोक-लोकान्तरी तथा दिशाओं को प्रकाशित एवं मोहित कर रहा था। उस पवित्र देवयुग (कृतयुग) का प्रथम चरण चंचल’ मति से चल पड़ा। महात्मा चन्द्रमा की अपार सुन्दरता ने देववाओं के गुरु महात्मा बृहस्पति की अद्वितीय सुन्दरी पत्नी को मोहित कर लिया । अन्त में महात्मा चन्द्रमा और सुन्दरी गुरु-पत्नी के संयोग से महा तेजस्वी बुध का आविर्भाव हुआ।
तेजस्वी बुध भी पिता के समान ही सुन्दर हुा । यथा समय सूर्यवंशी महीप प्रतापी इक्ष्वाकु की त्रैलोक्य सुन्दरी वहन इला से सम्बन्ध हुआ। कुछ दिनों के बाद इला के गर्भ से एक परम तेजस्वी रूपवान बालक उत्पन्न हुआ । देवताओं ने उसका नाम पुरुरवा रक्खा। पुरुरवा बड़ा तेजस्वी, प्रतापी तथा ऐश्वर्यवान हुआ। इसने अपने बल विक्रम से सम्पूर्ण पृथ्वी को आधीन कर प्रतिधान नगरी को राजधानी बनाई । उस समय समस्त भुवनों एवं लोकों की सारी सम्पत्ति प्रविष्ठान नगरी की समानता नहीं कर सकती थी । निःसन्देह पुरुरवा के शासन काल मे राजधानी अलका और अपरा से कम न थी।
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