आदमी, सतीश कुमार के द्वारा लिखी गयी एक हिन्दू धार्मिक पुस्तक है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुस्तक का कुल भार 94 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या 753 है। नीचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है। पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।
Writer (लेखक ) | सतीश कुमार |
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) | हिंदी |
Book Size (पुस्तक का साइज़ ) |
3 MB
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Total Pages (कुल पृष्ठ) | 180 |
Book Category (पुस्तक श्रेणी) | Uncategorized |
पुस्तक का एक मशीनी अनुवादित अंश
जव प्रभाकर को यह मालूम हुया कि मैं जैन मुनि नहीं हूँ, केवल वेश ही मेरे शरीर पर है तो प्रभाकर ने कहा कि आखिर इस वोझ की भी क्या जरूरत ? यह बात मेरे मन की ही थी। मैं भी इस वेश को छोड़कर एक साधारण मनुष्य की तरह ही जीवन बिताना चाहता था। मैंने साधु का वेश छोड़ दिया और साधारण धोती-कुर्ता पहनकर “समन्वय पाश्रम में खेती करने लगा। उसके बाद तो प्रभाकर के साथ मेरी मुलाकात बराबर होती रहती थी। कभी-कभी प्रभाकर के साथ सिनेमा देखने के लिए और रेस्तरां में चाय पीने के लिए भी मैं जाता था। हालांकि प्रभाकर वोधगया से दस मील दूर, गया शहर में रहता था। फिर भी हमारी मित्रता धीरे-धीरे मजबूत होती गयी। इसी बीच प्रभाकर बैंगलोर रहने लगा।
लगभग छः साल के बाद मैं ‘विश्वनीडम्’ में रहने के लिए बेंगलोर गया। स्टेशन पर ही प्रभाकर मुझे लेने पाया। बेंगलोर में तो हम एक ही जंगह काम करने के कारण और अधिक निकटता से एक दूसरे को समझ सके । पिछले छः सालों की मित्रता ने नया रूप धारण किया। मेरे मन में प्रभाकर के प्रति एक विशेष आकर्षण तथा अनुराग बढ़ता जा रहा था। मुझे यह बात अच्छी तरह अँच गयी कि किसी भी काम के लिए प्रभाकर पर पूरा भरोसा किया जा सकता है। सबसे पहले तो प्रभाकर की यह बात मुझे बहुत पसन्द आयी कि वह समय का बहुत पावन्द है।
डिस्क्लेमर – यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं।