चरित्रहीन, अज्ञात लेखक / लेखिका के द्वारा लिखी गयी एक उपन्यास है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुस्तक में लेखक ने चरित्र का वर्णन किया है। इस पुस्तक का कुल भार 18 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या 667 है। निचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है। पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।
Writer (लेखक ) | अज्ञात |
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) | Hindi | हिंदी |
Book Size (पुस्तक का साइज़ ) |
18 MB
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Total Pages (कुल पृष्ठ) | 667 |
Book Category (पुस्तक श्रेणी) | Novels / उपन्यास |
पुस्तक का एक मशीनी अनुवादित अंश
यह कलह हो जाने के बादसे सावित्री का भी मन प्रसन्न नहीं था। सतीश की कक्ति का जबाव देना उचित नहीं हुआ, यह अनुताप उसको दोपहर तक सताता रहा। इससे उसने सोचा था, कि दिनमे किसी समय एकान्तमे क्षमा मांग लूंगो, इसी आसाम बाट देखते-देखते जच सध्या बीत गयी, तब उसकी आशा बाशङ्कामे परिवर्तित होने लगी। वह जानती थो कि कलकत्ते मे विपिनके यहां जानेके सिवा सतोशके लिये और कही ठौर नहीं है। अत: सबसे पहले उसे यह भय हुआ कि वह जरूर उसीके यहाँ गया होगा।
धीरे धोरे रात बढ़ने लगी; पर सतीश नहीं आया। विपीनके सिवा वह और भी कहीं जा सकता है, एमा भाव भी उसके मनमे नहीं आया। सशय हद्ध होकर जय विश्वास के रूपमे आ पहुंचा, तब उसकी राह देखना भी क्रमशः सावित्रो के लिये असम्भव हो गया। वास्तर मे उसे घृणा मालूम होने लगी कि क्षमा मांगने के लिये वह से आदमी को बाट देख रही है ! इसी से विहारी को बैठने के लिये वरकर सावित्री बहुत रात हो जाने पर घर चली गयो। घर जाकर विदोने पर लेट तो रही, पर आंखों में नीद नहीं आयी। सारा शरीर एक अजीब वेचैनो से सवेरे के लिये छटपटाने लगा।
चरित्रहीन कमरेकी छोटी टाइमपीस घन्टे-घन्टे बाद बजने लगी, सावित्रो सारी रात उसका बजना सुनती रही। जब रात थोडी बाकी रह गयो, तब अंधेरा रहते ही, वह बिछौनेसे उठ बैठी। हाथमुंह धोकर बाहर चल पडी। रास्ते में उस समय मारवाडो स्त्रिया दल बावकर भजन गाती हुई गङ्गा-नहाने जा रही थी। उनकी ओर देखकर सावित्रीने मन-ही-मन कहा-“गहा मैया, ऐसा करो कि वह कुशलसे हो!” साथ ही उसके दोनों होठ काप उठे और गर्म आसुओंसे उसकी दोनों आखें भर गयी। एसी कल्पित आशङ्कामे वह सारे मनको डुबोकर बारबार सतीशकी कुशल-कामना करती हुई रास्ते मे शीघ्रता से चलने लगी।