वाल्मीकि रामायण – सुन्दरकाण्ड, विश्वबन्धु शास्त्री के द्वारा लिखी गयी एक हिन्दू धार्मिक पुस्तक है। यह पुस्तक संस्कृत भाषा में लिखित है। इस पुस्तक का कुल भार 94 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या 753 है। नीचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है। पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।
Writer (लेखक ) | विश्वबन्धु शास्त्री |
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) | संस्कृत |
Book Size (पुस्तक का साइज़ ) |
94 MB
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Total Pages (कुल पृष्ठ) | 753 |
Book Category (पुस्तक श्रेणी) | Religious / धार्मिक |
पुस्तक का एक मशीनी अनुवादित अंश
स सागरमनाधृष्यं, विक्रम्य हरिपुंगवः
कूटस्य तटे ठंकां, स्थितः स्वस्थो निरेक्षत ॥१॥`
ततः पादपमुक्तेन, पुष्पवर्षेण वीर्यवान् ।
अभिदष्ठंः स्थितस्तत्र, वभो पुष्प-मयो यथा ।२॥ `
सार-वान् सागरस्यान्ते, निपत्योत्तम-विक्रमः ।
समा््वैस्य कपिस्त्, न र्मनि सोऽध्यग्छत् |॥३॥
आर्त्मसंस्थं मर्नः शर्वा, चिन्तयामास वानरः }!
शतान्य योजनानां, षेये सुबहून्यपि । `
कि पुनः सागरस्यान्ते, परिसंख्यात-योजनंम् ॥५॥’
सतु वीर्यवतां श्रेष्ठः, पुवतामपि चोत्तमः !
जगाम मतिमान् कां, छंषयित्वा महोदधिम् ॥५॥’
श्ाद्रछानि च नीखनि, माटयवंति वनानि च ।
गन्धवंति च मध्येन, जगाम नर्गवंति च ॥६।
रैखांश्च तरू-संच्छन्नान, वन-राजीश्च पुष्पिताः ।
प अतिचक्राम तेजखी, हनुमान. पवनाऽऽस्मर्जः ॥७॥
वनान्युपवनानि च। पर्वताग्रे च तां छंकां, ददे हनुमान फंपिः ॥८॥
शाछान तार्छान् कणिकासान,खजैराऽऽपरां शव पुष्पितां ।
डिस्क्लेमर – यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं।