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Ramayan Katha | रामायण कथा Hindi PDF – Raghunath Singh

वाल्मीकि रामायण आदि मौलिक काव्य है। रामायण की कथाओं का मूल स्रोत है। उसी के आधार पर विविध भाषाओं तथा देशों मे रामायण की रचनाएँ की गयी है। राम की गाथा को भारतीय जीवन से अलग करना आत्मा और काया को एक-दूसरे से भिन्न करना होगा। काशी मे जन्म-भूमि होने के कारण रामायण और उसकी गाथा के प्रति अभिरुचि होना मेरे लिए स्वाभाविक है । काशी के भिन्न-भिन्न स्थानों मे रामलीला एक मास तक होती है। रामलीला के वातावरण से आश्विन मास भर उठता है । मै बाल्यकाल मे किसी-न-किसी पात्र का रूप बनता था, कभी वानर बनता था, तो कभी राक्षस । बड़े होने पर रामलीला के आयोजन में भाग लेने लगा।

रामलीला मे तुलसीकृत रामायण, बालकाण्ड से उत्तरकाण्ड तक, मृदग तथा शांझ पर रामायणी लोग गाते है। बीच मे प्रसंग विशेष आने पर रामायण बन्द हो जाती है । ‘चुप रहों की आवाज लगती है। सवाद होता है। पात्र कार्य करते है। इस प्रकार राम-लीला मे आध्यात्मिकता के साथ भौतिक रोचकता आ जाती है । भक्त, साहित्यिक, नाटक-लीला-मेला-प्रेमी, पढ़े-अनपढ़े सभी का मनोरजन होता है । चौपाइयाँ, दोहे तथा छन्द लोगों को अनायास सुनते-सुनते याद भी हो जाते है।

रामायण केवल काव्य नही है। वाल्मीकीय, तुलसीदाकृत अथवा किसी भी भाषा में वह प्रत्येक भारतीय गृहस्थ की पूज्य सामग्री हैं। उत्तर भारत मे घर की महिलाएं तुलसीकृत रामायण पढ़ती है। उनके लिए वह बोधगम्य है । वे अपने आँगन के चीरा पर तुलसी की पूजा करती है, दिये जलाती है । नारायण के चरणों मे आत्म-समर्पण करती है । भगवान् भास्कर को प्रणाम करती है। स्त्रियाँ तुलसीचौरा, अथवा भगवान् अथवा हनुमानजी की मूर्ति, चित्रादि के सम्मुख बैठ कर रामायण पढ़ती है | नैवेद्य सम्मुख रखा रहता है । शिशु तथा बालक-बालिकाएं चुपचाप प्रसाद पाने की आशा मे कोमल नारी-हृदय की पवित्र वाणी सुनती रहती है।

पुरुष प्रायः उत्सव, सत्संग अथवा मंदिर में, वृद्ध रामायण, ढोल, झाँझ पर गाते है अथवा पुरुष बैठका अथवा दालान मे ऊँचे स्वर में रामायण लय से पढते है । कभी-कभी ‘बानी’ के साथ दुहराते है । विशेषत रात्रि में दीपक के सम्मुख पढते समय घर के बालक एकत्र हो कर चुपचाप सुनते है । उस समय की पवित्रता तथा श्रद्धा वर्णनातीत है। इस प्रकार बाल्यकाल से ही मेरा रामायण से घनिष्ट सम्बन्ध रहा है।

Writer (लेखक ) रघुनाथ सिंह
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) हिंदी
Book Size (पुस्तक का साइज़ )
12 MB
Total Pages (कुल पृष्ठ) 342
Book Category (पुस्तक श्रेणी) Religious / धार्मिक

पुस्तक का एक मशीनी अनुवादित अंश

‘इस लोक में, इस स्थान में, कौन गुणवान् है ? कौन वीर्यवान् है ? कौन धर्मज है ? कौन कृतज्ञ है ? कौन सत्यवक्ता है ? कौन दृढव्रत है? अपने चरित्र में कौन युक्त है ? भूतों के हित में कौन रत है ? कौन विद्वान् है ? कौन समर्थ है ? एकमात्र कौन प्रियदर्शन है ?

कौन आत्मवान् है ? कौन जितक्रोध है ? कौन द्युतिमान् है ? कौन अनसूयक है ? और किसके रोष से देवतागण युद्ध मे भयभीत हो जाते है ? _ ‘मैं उस पुरुष श्रेष्ठ को जानना चाहता हूँ। यही मेरा परम कौतूहल है। महर्षे ! आप समर्थ है। आपको उस नर का ज्ञान है । क्या मेरी श्रवणेन्द्रियाँ उस पवित्र पुरुष की सुन्दर गाथा सुनकर कृतार्थ होंगी?’

तप और स्वाध्याय निरत, श्रेष्ठ वाग्विद् भगवान् नारद से मुनि पुंगव वाल्मीकि ने नम्रतापूर्वक पूछा ।

महर्षि वाल्मीकि की जिज्ञासु वाणी त्रिकालज्ञ देवर्षि नारद ने सुनी । वे प्रसन्नतापूर्वक बोले-‘मुने ! आपने दुर्लभ गुणों का वर्णन किया है। मै इन गुणों से युक्त नर की बात कहता हूँ। आप कृपया सुनिए ।’

पुलकित देवर्षि नारद के मुख-मण्डल पर पवित्र कान्ति प्रस्फुटित हो उठी। वे निमीलित नेत्र हृदयस्थ देव के चरणों में लीन होने लगे। मुद्रा गम्भीर हो गई। किंचित् सस्मित वाणी मुखरित हुई।

‘लोक में वे राम नाम से विख्यात हैं । वे इक्ष्वाकु वंश की शोभा हैं । वे नियतात्मा, महावीर्यवान् द्युतिमान्, धृतिमान् और जितेन्द्रिय हैं।

‘वे बुद्धिमान् नीतिमान् वाग्मी, शोभायमान, शत्रुमर्दन, महाबाहु, कम्बुग्रीव और महाहनु है। ___महर्षि वाल्मीकि के शान्त जिज्ञासु लोचन देवर्षि नारद के कांतिमय मुखमण्डल पर स्थिर होने लगे । देवर्षि नारद की गम्भीर वाणी पुनः मुखरित हुई :

डिस्क्लेमर – यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं।

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