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Garud Puran (गरुड़ पुराण) Hindi PDF – श्रीराम शर्मा आचार्य

‘गरुड़ पुराण की विशेषताओं पर इसकी भूमिका और उपसंहार में आवश्यक विवेचना की जा चुकी है। एक सामान्य हिन्दू-धर्म अनुयायी की दृष्टि मरणोत्तर कर्मकाण्ड का महत्व बहुत अधिक है-इतना अधिक है कि उसका योजन पूर्ण नियमानुकूल और परम्परा के अनुसार करने के लिए वह प्रायः पने लिए बड़ी-बड़ी कठिनाइयाँ पैदा कर लेता है। अनेक स्थानों में और नेक जातियों में दाह-संस्कार, तीजा, एकादशा, वयोदशा (तेरहवीं) प्रादि के म पर पोर महामाह्मण को थीयादानादि करने के रूप में, और फिर समस्त नि-भाइयों को भोज देने की प्रथा का पालन करके इतना व्यप-भार उठाना है कि अनेक गरीबों की उससे कमर ही टूट जाती है और उसका कुपरिणाम उनको बरसों तक भोगना पड़ता है। पाठकों ने ऐसे ऐसे मृगक भोड़ों का भी वर्णन सुना होगा जिनमें ५-५ हजार तक लोग भोजन करते हैं । अगर इससे चोधाई भी भार किसी साधारण प्राधिक अवस्था वाले पर पड़ जाय तो वसको कैपी सांघातिक चोर लगेगी इसे भुक्तभोगी सहज ही में जान सकते हैं।

जन-साधारण की दृष्टि में ‘गरुड़-पुराण’ का महत्व इसी कारण अधिक है क्योंकि इसमें पोर्ट दैहिक कर्मों का विवेचन किया गया है और लोग उसे प्रद्धापूर्वक सुनते और मानते हैं। इस समय यद्यपि देश-काल के प्रभाव से लोगों विचारों में अनेक नवीन परिवर्तन हो रहे हैं, तो भी हिन्दू-समाज में, विशेषगा ग्रामीण जनता में ऐसे व्यक्ति बहुत कम मिलेंगे जो इन प्रयासों का उल्लंघन रिने का साहस कर सकें। इस कारण सब लोग अपनी शक्ति पीर परिस्थिति के अनुसार उन कर्मकाण्डों की पूर्ति करने का प्रपल करते हैं, जिनका निर्देश ‘गरुड़ पुराण’ में किया गया है।

गरुड़-पुराण की शिक्षायें

गरुड़-पुराड के ‘प्रेत खण्ड’ में ३५ अध्याय है। इनमें दान का फल पतला कर उसके द्वारा मृतात्मा की सद्गति का वर्णन किया गया है । यमलोक के भयकर माटो का वर्णन करके यह बनलाया गया है कि सबंधिषो के दान.दि के द्वारा परलोक में मृतात्मा के कष्टो मे किस प्रकार कमी हो सकती है। इसके लिये ‘वृपोत्मग’ (बिजार या साँड छोडना) का बड़ा महत्व दर्शाया है। यमराज के न्यायालय पौर उनके कार्याध्यक्ष चित्रगुप्त के स्थानो का वर्णन भी कई जगह विस्तार पूर्वक किया गया है। इसका उद्देश्य यही हो सकता है कि साधारण उन पाप कमों से ययामम्मव बच कर रह, जिनसे यमलोक मे पए पाने की सम्भावना हो । मागे चलकर अपमृत्यु मरने वाले व्यक्तियो के प्रेत होने का वर्णन मोर प्रेत योनि में जीव की घोर दुर्दशा वर्णन किया गया है । 

अकाल मृत्यु का कारण

इसमें एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठाया गया है कि जब भगवान ने मनुष्य की स्वाभाविक मायु सौ वर्ष की नियत कर दी है तब वह अकाल मृत्यु का पास धन कर प्रेत-योनि को क्यो प्राप्त होता है ? इसके उत्तर में भगवान कृष्ण ने यह स्वीकार किया कि वास्तव में संसार में जन्म लेने वाले सभी मनुष्यो की उम्र सौ वर्ष नो नियत होती है, पर मनुष्य अपने दुको दुराचरणो पथवा पूर्व जन्म के पापो से स्वयं ही अपनी प्रायु को क्षीण करने का कारण बनता है और समय से पूर्व ही इस लोक को छोड कर परलोक को प्रयाण करता है। इस प्रसङ्ग से इस बात का स्पष्ट रूप से खउन हो जाता है कि ‘ब्रह्मा ने मनुष्य की जो मायु नियत कर दी है उसमे एक क्षण का भी पनर नहीं हो सकता ।’ जो लाग भाग्यवाद के सिद्धान्त का वास्तविक तात्पर्य न समझ कर “राई घटेन तिल बढ़े रह रे जीव निशङ्क” की उक्ति को प्रमाण माना करते हैं।

मानव-जीवन की श्रेष्ठता

वास्तव में मानव-जीवन और मानव-देह का प्राप्त होना सृष्टि का सबसे बड़ा अनुदान है। चाहे हम धर्म दृष्टि से देखे और चाहे विज्ञान की दृष्टि से, संसार में जितने भी चराचर प्राणी पाये जाते है मनुष्य उनमें सर्वोच है। उसे जो विवेक बुद्धि, सूक्ष्म विषयों को समझ सकने योग्य मस्तिष्क और मानर्यजनक क्षमता युक्त कर्मेन्द्रियाँ तथा ज्ञानेन्द्रियाँ प्रदान की गई हैं, उनकी तुलना मौर कहीं दिखाई नहीं पडनी । मनुष्य को ससार में जो अपार सुविधायें और उपयोगी कर्म करने के अवसर प्राप्त हुए है वे ऐसे महान पोर अलभ्य हैं कि ‘देवगण’ भी सदैव उनकी मभिलाषा किया करते हैं । इसी तथ्य को समझ कर ‘विष्णु-पुराण‘ में कहा गया है – 

गायन्ति देवा. किलगीतिकानि धन्यास्तु ये भारतभूमि भागे।
स्वर्गापवर्गस्य फलानाय भवन्ति भूय पुरुप. सुरत्वात् ।।

गरुड पुराण, श्रीराम शर्मा आचार्य के द्वारा लिखी गयी पुस्तक है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुस्तक के दो भाग है जिसका भार क्रमशः  8 MB, 8.17 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या क्रमशः 481 एवं 504 है। निचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है।  पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।

Writer (लेखक ) श्रीराम शर्मा आचार्य
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) Hindi | हिंदी
Book Size (पुस्तक का साइज़ )
8 MB & 8.17 MB
Total Pages (कुल पृष्ठ) 481 & 504
Book Category (पुस्तक श्रेणी) Religious-Hinduism (धार्मिक-हिन्दू धर्म)

पुस्तक का एक अंश

मरणोत्तर-बीवन की इस विचार धारा का सबसे अधिक विस्तार ‘गरुड पुराण‘ में किया गया है। यद्यपि इसमें और भी अनेक जीवनोपयोगी विषयों का वर्णन पाया जता है, पर यमलोक तथा नरको का वर्णन मोर मृत्यु के उपरान्त किये जाने वाले कर्म का एडो का विधि-विधान ही इसकी सबसे बढी विशेषता मानी गई है। इस कारण भनेक हिन्दू घरो मे किसी व्यक्ति का देहान्त होने के अवसर पर इस पुराण का पारायण पिया जाता है और इसके मनुसार न्यूनाधिक मात्रा में दान-दक्षिणा भी किसी पुरोहित या ‘महाब्राह्मणा’ आदि को दी जाती है। इसमें यमपुर के मार्ग तथा नरको के कष्टो का वन ऐसे भयङ्कर और वीभत्स रूप में किया गया है कि सुमने वाले का हृदय पिने लगता है। यह तो नहीं कहा जा सकता कि सब लोगो पर इसका प्रभाव स्थायी होता है, पर भारतीय-पमाज मे नरक’ का जिक्र होना एक सामान्य बात है। 

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