अठारह महापुराणों में यद्यपि यह ‘विष्णु पुराण’ आकार की दृष्टि से सबसे छोटा है , पर इसका महत्त्व प्राचीन समय से है, बहुत अधिक माना गया है। पुराणों में जो पुराण-सुचिया मिलती है उन सभी में इसको तृतीय स्थान दिया गया है। संस्कृत के विद्वानो की दृष्टि में इसकी भाषा ऊँचे दर्जे की साहित्यिक काव्यगुण सम्पन्न और प्रमाद्गुणयुक्त मानी गयी है। जहां तक अनुमान है भाषा की श्रोता में भागवत के सिवाय किसी अन्य ग्रन्थ की तुलना इससे नहीं की जा सकती। भूमण्डल का स्वरुप , ज्योतिष, राजवंशो का इतिहास, कृष्ण चरित्र आदि विषयो का इसमें बड़े बोधगम्य ढंग से वर्णन किया गया है। कई पुराणों में जो सांप्रदायिक खंडन अथवा विरोध की भावना पाई जाती है, उससे भी यह मुक्त है। धार्मिक तत्वों का इसमें जैसी सरल और सुबोध शैली में वर्णन किया गया है और उसकी जितनी प्रशंशा की जाय कम है।
‘विष्णु पुराण’ की श्लोक में बड़ा मतभेद है। अधिकांश स्थानों में २३ हजार श्लोक बतलाये गए है पर जो ग्रन्थ इस समय प्राप्त है उसमे केवल ७ हजार श्लोक पाए जाते है। इस पर कई विद्वान कहते है कि ‘विष्णो धर्मोत्तर पुराण’ इसी का उत्तरार्ध है। इसको मान लेने पर और विष्णो धर्मोत्तर के नौ हजार श्लोको को जोड़ देने पर भी सोलह हजार की संख्या प्राप्त होती है जो तेईस हजार में सात हजार कम है। इस प्रकार यह एक ऐसी समस्या हो गयी है जिसके सम्बन्ध में कोई निर्णयात्मक सम्मति दे सकना असंभव है।
यद्यपि डॉ विलसन जैसे विदेशी विद्वान इसको बहुत बाद की रचना कहकर छुटकारा पा जाते है, पर किसी हिन्दू धर्म अनुयायी को इससे संतोष नहीं हो सकता। हम तो इस विषय सिर्फ यह कह सकते है किसी कारणवश प्राचीन काल में ही विष्णु पुराण का संक्षिप्त संस्करण किसी विद्वान ने पृथक कर दिया हो और मूल ग्रन्थ विदेशियों के आक्रमण के समय नष्ट हो गया हो।
विष्णु-पुराण के वर्ण्य-विषय
विष्णु पुराण छह भ्रंश में बँटा है, जिनमे १२६ अध्याय है। पहले भ्रंश में काल का स्वरुप, सृष्टि की उत्पति और ध्रुव, पृथु और प्रह्लाद का वृतांत है। दूसरा भ्रंश लोको के स्वरुप के सम्बन्ध में है। इसमें पृथ्वी के भी खंड, सात पाताल लोक और सात उर्ध लोकों का वर्णन है। गृह-नक्षत्र, ज्योतिष-चक्र, नवग्रह आदि का भी परिचय दिया है। तीसरे में मन-वांतर, वेदो की दास्ताओ का विस्तार, गृहस्थ धर्म और विधि वर्णित है। चौथे अंश में सूर्यवस, चंद्रवस आदि के राजाओ के चरित्र और उनकी वंशावली वर्णन की गई है। पांचवा भ्रंश, जो पर्याप्त बड़ा है, श्रीकृष्ण चरित्र तथा उनकी लोकोत्तर लिलाग्रो से सम्बद्ध रखता है। यह बात उल्लेखनीय है कि जहाँ इसमें राम-चरित्र दस-बीस श्लोको में ही दिया गया है कृष्ण चरित्र का विस्तार सैकड़ो पृष्ठ में है। अंतिम भ्रंश छोटा है जिसमे प्रलय और मोक्ष मार्ग का वर्णन करके ग्रन्थ का उपसंहार किया गया है।
विष्णु पुराण का आविर्भाव
विष्णु पुराण के आविर्भाव की कथा भी एक विशेष महत्व रखती है। इसमें दया, क्षमा की वृति का एक उत्तम उदाहरण मिलता है। महर्षि वशिष्ट के पौत्र पराशर जी को जब ज्ञात हुआ कि उनके पिता विश्वामित्र जो भी प्रेरणा से राक्षस ने खा लिया था तो उन्हें बड़ा रोष आया और उन्होंने राक्षसो के नाश के लिए एक यज्ञ आरम्भ किया, जिसमे सैकड़ो राक्षस भस्म होने लगे। यह देख पितामाह वशिष्ठ जी ने उनको समझाया कि तुम्हारे पिता की मृत्यु में राक्षसों का कोई विशेष दोष न था और भाग्यवश ही उनकी इस प्रकार मृत्यु हो गयी है। ध्रुव तुम इस प्रकार के क्रोध को त्याग दो , क्योकि साधुओ का मुख्य लक्षण क्षमा ही कहा गया है :-
सचित्तस्यापि महत्ता वत्स वनेदोन मानवैः |
यशतपपस्श्चै न क्रोधोनाशकरः परः ||
स्वर्गापवर्ग भ्याशेव कारख परमेशय |
वर्ज्यन्ति सदा क्रोध तात मा तदवशी भव ||
Writer (लेखक ) | वेदमूर्ति तपोनिष्ठ |
Book Language ( पुस्तक की भाषा ) | Hindi | हिंदी |
Book Size (पुस्तक का साइज़ ) |
7 MB, 9.07
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Total Pages (कुल पृष्ठ) | 510, 505 |
Book Category (पुस्तक श्रेणी) | Religious-Hinduism (धार्मिक-हिन्दू धर्म) |
इस पुस्तक के लेखक श्री वेदमूर्ति तपोनिष्ठ जी है। यह पुस्तक हिंदी भाषा में लिखित है। इस पुराण के दो भाग है जिनका कुल भार क्रमशः 7 MB एवं 9.07 MB है एवं कुल पृष्ठों की संख्या क्रमशः 510 एवं 505 है। निचे दिए हुए डाउनलोड बटन द्वारा आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है। पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती है। यह हमारा ज्ञान बढ़ाने के साथ साथ जीवन में आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है। हमारे वेबसाइट JaiHindi पर आपको मुफ्त में अनेको पुस्तके मिल जाएँगी। आप उन्हें मुफ्त में पढ़े और अपना ज्ञान बढ़ाये।
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